महामृत्युंजय मंत्र के जरिये चिकित्सा से उठा बवंडर

महामृत्युंजय मंत्र के जरिये चिकित्सा से उठा बवंडर

किशोर कुमार

दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल के एक चिकित्सक ने महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति से न्यूरो चिकित्सा करने का दावा क्या किया, भारतीय चिकित्सा जगत में इस मंत्र के चमत्कारिक प्रभावों के पक्ष-विपक्ष में बवंडर उठा हुआ है। बड़े-बड़े प्रगतिशील विद्वानों ने हाय-तौबा मचा रखी है। उन्हें लगता है कि यह हिन्दुत्ववादियों के भीतर की कुंठा और छद्म विज्ञान को बढ़ावा देने वाली बात हैं। दूसरी तरफ स्पेन सहित कई विकसित देशों में हुए शोधों से साबित हो चुका है कि मंत्रों से जीवन की दशा बदल जाती है। बीमारियां ठीक होती हैं। मन का बेहतर प्रबंधन होता है।

 

मंत्रों की शक्ति जानने के लिए आज भी दुनिया भर में प्रयोग किए जा रहे हैं। अनेक प्रयोगों में नतीजे आशा के अनुरूप हैं। यानी साबित हुआ है कि मंत्रों के जरिए ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो मनुष्य के जीवन के विकारों और विकृतियों को दूरृ करने में सक्षम है। इसलिए कि मनुष्य के सूक्ष्म व्यक्तित्व पर मंत्रों का असर होता है। विज्ञान की कसौटी पर साबित हो चुकी इस बात की विस्तार से चर्चा से पहले राममनोहर लोहिया अस्पताल की बात। 

 

हाल ही राम मनोहर लोहिया अस्पताल में गंभीर ब्रेन इंजरी के मरीजों का वैदिक मंत्रों खासतौर से महामृत्युंजन मंत्र से इलाज किया गया। यह काम केंद्र सरकार की ओर से प्रायोजित एक शोध के तहत किया गया है। न्यूरो सर्जरी विभाग के वरिठ शोध फेलो डॉ अशोक कुमार ने मंत्र शक्ति से चिकित्सा का अध्ययन को करने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से सहयोग मांगा था। परिषद ने उनके प्रस्ताव को मान लिया और मामूली धन की व्यवस्था भी कर दी। डॉ. कुमार का दावा है कि अब तक हुए शोधों के नतीजे उम्मीदों से बढ़कर हैं।

 

डॉ. कुमार कहते हैं कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि लंका पहुंचने के लिए सेतु बनाने से पहले भगवान राम ने महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया था। प्राचीन काल में सैनिक जब घायल हो जाते थे जो उन्हें ठीक करने के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता था। दरअसल प्रार्थना से आध्यात्मिक स्पंदन पैदा होती है, जिससे मानसिक तनाव कम होता है। साथ ही साइटोकिन्स कम होता है, जिससे गंभीर दिमागी चोट वाले रोगियों को अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है।

 

डॉ. कुमार बताते हैं कि अक्टूबर 2016 से अप्रैल 2019 के बीच 40 मरीजों की दो श्रेणियां बनाकर इलाज किया गया। एक समूह के लिए इन्टर्सेसरी प्रार्थना की गई, जबकि दूसरे को प्राप्त उपचार जारी रखा गया। फिर इन दोनों समूहों के नतीजों का अध्ययन किया गया। देखा गया कि जिन मरीजों के लिए इन्टर्सेसरी प्रार्थना वाला उपचार किया गया था, उनके परिणाम बेहतर निकले।

 

स्पेन की राजधानी मैड्रिड में कुछ साल पहले महामृत्युंजय मंत्र के प्रभावों को लेकर बड़ा शोध हुआ था। इसका संचालन टेलीकांफ्रेंसिंग के जरिए परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने किया था। वह नासा के पांच सौ वैज्ञानिकों में से एक हैं, योग-शक्ति से फ्रिक्वेंसी भेजकर दूरस्थ मानव के उपचार पर काम कर रहे हैं। उन्होंने एक हॉल में एक हजार लोगों को बैठाया और महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का निर्देश दिया। दूसरी ओर दूसरी तरफ वैज्ञानिकों को निर्देश दिया कि वे पांच सौ क्वांटम मशीनों से मंत्रों की फ्रिक्वेंसी को मानिटर करें। मंत्रोच्चारण के प्रभाव से मशीनों में कंपन शुरू हो गया। वैज्ञानिकों की आंखें खुली रह गईं जब उन्होंने देखा कि मंत्र की शक्ति से फ्रिक्वेंसी का विशाल फील्ड तैयार हो चुका है। वैज्ञानिकों का कहना था – “महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव ऐसा है मानों पूरे मैड्रिड शहर के ऊपर एक बड़ा-सा छाता खोल दिया गया हो।“

 

स्पेन में हुए शोध से साबित हुआ था कि मन की तरंगें सही रूप में उपयोग में लाई जाएं तो हमारा जीवन सुरक्षित हो सकता है। इस प्रयोग से कोई साठ साल पहले यौगिक शोधों के लिए मशहूर महाराष्ट्र के योगी स्वामी कुवल्यानंद और बिहार के योगी स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने कहा था – “महामृत्युंजय मंत्र की साधना से असाध्य रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है।“  दुनिया का पहला योग विश्व विद्यालय के परमाचार्य रहे पद्मविभूषण स्वामी निरंजनानंद सरस्वती कहते हैं – “मैं अनेक साधकों को जानता हूं, जो मंत्रों की शक्ति से आरामदायक जीवन व्यतीत कर रहे हैं।“  

उधर, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद का कहना है, “विज्ञान का हवाला देकर आस्था को प्रमाणित करना हिन्दुत्ववादियों के भीतर की कुंठा को दर्शाता है और यह छद्म विज्ञान को बढ़ावा देता है।” 

 

अपने देश में अगले तीस सालों में अल्जाइमर्स के रोगियों की संख्या में तीन गुणा इजाफा होने की आशंका है। तमाम वैज्ञानिक खोजों के बावजूद कारगर इलाज संभव नहीं हो सका है। योग और मंत्रों की शक्ति नई राह दिखा रही है। ऐसे में वैज्ञानिक तथ्यों को धर्म की चाशनी में लपेट कर राजनीति करना उचित नहीं। इसका खामियाजा हम पहले ही भुगत चुके हैं। सदियों पुराने ज्ञान को मिट्टी में मिला चुके हैं। अब वही ज्ञान पश्चिमी देशों में विज्ञान की कसौटी पर सही साबित हो रहा है। फिर भी भारत की भूमि पर उसे मान्यता न मिले, तो इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और योग, अध्‍यात्‍म, राजनीति आदि पर लेखन का दशकों का अनुभव रखते हैं।उनका यह आलेख पूर्वोदय टाइम्‍स में प्रकाशित है। ) 

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